कृषि कानून पर नहीं लगाई रोक तो हम लगाने को तैयारः सुप्रीम कोर्ट

11/01/2021,8:57:31 PM.

– कोर्ट ने कहा- कृषि कानूनों की समीक्षा के लिए बनेगी कमेटी
– सरकार से कमेटी के लिए रिटायर्ड जज का नाम सुझाने को कहा
– सरकार ने कानून पर नहीं लगाई रोक तो हम लगाने को तैयार

नई दिल्ली (एजेंसी)। सुप्रीम कोर्ट ने किसान आंदोलन पर केंद्र सरकार के रुख पर ऐतराज जताया है। आज सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एसए बोब्डे की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि महीनों के बावजूद कोई हल नहीं निकला। हम एक कमेटी बनाकर इस कानून की समीक्षा कर सकते हैं। अगर कानून के पालन पर रोक नहीं लगाई गई तो हम इस पर रोक लगा सकते हैं। इस मामले पर कल भी सुनवाई जारी रहेगी।

इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट कल यानी 12 जनवरी को आदेश जारी कर सकता है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वो कृषि कानूनों की समीक्षा के लिए बनाई जाने वाली कमेटी की अगुवाई करने के लिए रिटायर्ड जज का नाम सुझाएं। आज किसान संगठनों की ओर से वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने कहा कि किसान संगठनों की ओर से चार वकील होंगे। गोंजाल्वेस के अलावा दुष्यंत दवे, प्रशांत भूषण और एचएस फुल्का किसान संगठनों की पैरवी करेंगे।

सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि सभी पक्षों में बातचीत जारी रखने पर सहमति है। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि हम बहुत निराश हैं। पता नहीं सरकार कैसे मसले को डील कर रही है। किससे चर्चा किया कानून बनाने से पहले। कई बार से कह रहे हैं कि बात हो रही है। क्या बात हो रही है। तब अटार्नी जनरल ने कहा कि कानून से पहले एक्सपर्ट कमेटी बनी थी। कई लोगों से चर्चा की गई। पहले की सरकारें भी इस दिशा में कोशिश कर रही थीं। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि यह दलील काम नहीं आएगी कि पहले की सरकार ने इसे शुरू किया था। आपने कोर्ट को बहुत अजीब स्थिति में डाल दिया है। लोग कह रहे हैं कि हमें क्या सुनना चाहिए, क्या नहीं। लेकिन हम अपना इरादा साफ कर देना चाहते हैं। अगर आप में समझ है तो कानून के अमल पर ज़ोर मत दीजिए। फिर बात शुरू कीजिए। हमने भी रिसर्च किया है। एक कमेटी बनाना चाहते हैं।

सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि बहुत बड़ी संख्या में किसान संगठन कानून को फायदेमंद मानते हैं। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि हमारे सामने अब तक कोई नहीं आया है, जो ऐसा कहे। अगर एक बड़ी संख्या में लोगों को लगता है कि कानून फायदेमंद है तो कमेटी को बताएं। आप बताइए कि कानून पर रोक लगाएंगे या नहीं। नहीं तो हम लगा देंगे। चीफ जस्टिस ने कहा कि आप हल नहीं निकाल पा रहे हैं। लोग मर रहे हैं। आत्महत्या कर रहे हैं। महिलाओं और वृद्धों को भी बैठा रखा है। हम कमेटी बनाने जा रहे हैं। चाहे आपको हम पर भरोसा हो या नहीं। हम देश का सुप्रीम कोर्ट हैं। अपना काम करेंगे।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि सिर्फ कानून के विवादित हिस्सों पर रोक लगाइए। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि हम पूरे कानून पर रोक लगाएंगे। इसके बाद भी संगठन चाहें तो आंदोलन जारी रख सकते हैं। लेकिन क्या इसके बाद नागरिकों के लिए रास्ता छोड़ेंगे। चीफ जस्टिस ने कहा कि हमें आशंका है कि किसी दिन वहां हिंसा भड़क सकती है। तब साल्वे ने कहा कि कम से कम आश्वासन मिलना चाहिए कि आंदोलन स्थगित होगा। सब कमेटी के सामने जाएंगे। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि यही हम चाहते हैं लेकिन सब कुछ एक ही आदेश से नहीं हो सकता। हम ऐसा नहीं कहेंगे कि कोई आंदोलन न करे। यह कह सकते हैं कि उस जगह पर न करें।

सुनवाई के दौरान कानून के खिलाफ याचिका दायर करने वाले वकील एमएल शर्मा ने 1955 के संविधान संशोधन का मसला उठाया। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि हम फिलहाल इतने पुराने संशोधन पर रोक नहीं लगाने जा रहे हैं। मध्य प्रदेश के कुछ संगठनों के लिए वरिष्ठ वकील विवेक तन्खा ने दलील रखने की कोशिश की। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि आपकी याचिका पर आगे सुनवाई करेंगे। आप किसी राजनीतिक दल के लिए आए हैं या किसान के लिए। आज एक पार्टी ने बताने की कोशिश की है कि हमें क्या करना चाहिए। आप सब सार्वजनिक जीवन में हैं। ऐसा करना सही नहीं है।

इस मामले में याचिकाकर्ता ऋषभ शर्मा ने पिछले 9 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर सड़क तुरंत खाली कराने की मांग की थी। हलफनामा में कहा गया था कि शाहीन बाग फैसले का पालन करवाया जाए। हलफनामा में कहा गया है कि किसानों के सड़क जाम से लाखों लोगों को परेशानी हो रही है। प्रदर्शन और रास्ता जाम की वजह से हर रोज करीब 3500 करोड़ रुपये का नुक़सान हो रहा है। इससे लोगों के आवागमन और आजीविका कमाने के मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है। हलफनामा में कहा गया है कि पंजाब में मोबाइल टावर तोड़े जा रहे हैैं। किसानों ने 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली करने की योजना बनाई है।

पिछले 6 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने एक नई याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए उसे दूसरे मामलों के साथ टैग कर दिया था। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई कि किसानों के आंदोलन को लेकर कोई प्रगति नहीं हुई है। सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि आगे आने वाले कुछ दिनों में इस बात की पूरी संभावना है कि दोनों पक्ष किसी समझौते पर पहुंचें।

उल्लेखनीय है कि 17 दिसंबर, 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने किसानों के आंदोलन के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कहा था कि हमने क़ानून के खिलाफ प्रदर्शन के अधिकार को मूल अधिकार के रूप में मान्यता दी है, उस अधिकार में कटौती का कोई सवाल नहीं, बशर्ते वो किसी और की ज़िंदगी को प्रभावित न कर रहा हो। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या जब तक बातचीत से कोई समाधान नहीं निकल जाता, क्या सरकार कानून लागू नहीं करने पर विचार कर सकती है।

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