13/11/2020,8:36:31 PM.
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कोलकाता: बिहार चुनाव में पांच सीटें जीतने के बाद एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने बंगाल में चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। जाहिर सी बात है इससे बंगाल में अल्पसंख्यक वोट बंट सकता है। ऐसे में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी (टीएमसी) पर इसका क्या असर होगा, अब इस पर मंथन शुरू हो गया है।
तृणमूल को बंगाल में अल्पसंख्यकों का भारी समर्थन प्राप्त है और इनके वोट से ममता बनर्जी की पार्टी जीतती रही है। इससे पहले 2011 तक लेफ्ट पार्टियां अल्पसंख्यक वोटों का पूरा फायदा उठाती थीं, लेकिन बंगाल से लेफ्ट की विदाई के बाद यह पूरा समर्थन तृणमूल को मिलता रहा है। ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम इन्ही वोटों पर निशाना साधते हुए अगले विधानसभा चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही है। उधर, ओवैसी के इस ऐलान से तृणमूल बेपरवाह दिखती जान पड़ रही है क्योंकि उसका मानना है कि एआईएमआईएम का प्रभाव हिंदी और उर्दू बोलने वाले मुस्लिमों पर ही पड़ेगा जिनकी आबादी बंगाल में महज छह फीसद के आसपास है। बंगाल में मुस्लिमों की तादाद 30 फीसद है और यह देश में कश्मीर के बाद दूसरे स्थान पर आती है। बंगाल के 294 विधानसभा सीटों में 100-110 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर्स जीत-हार का फैसला करते हैं। ये वोट अब तक ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल को जाते रहे हैं और ममता बनर्जी इसे अपना भरोसेमंद वोट बैंक मानती रही हैं। अब आगे देखने वाली बात होगी कि ओवैसी की पार्टी इसमें कितना सेंध लगा पाती है।
एआईएमआईएम अगर इन वोटों में बंटवारा करती है तो इससे ममता बनर्जी को नुकसान और भाजपा को फायदा होगा। बंगाल के कई जिले ऐसे हैं जहां उनकी पार्टी का जनाधार है। अल्पसंख्यक बहुल जिले जैसे कि मालदा, मुर्शीदाबाद दक्षिण दिनाजपुर, पूर्वी दिनाजपुर और दक्षिण 24 परगना जैसे जिलों में एआईएमआईएम का पहले से आधार है। ये वो जिले हैं जहां से बंगाल की 60 सीटें निकलती हैं। दिलचस्प बात यह भी है कि दक्षिण 24 परगना को छोड़ दें तो बाकी के चार जिले बिहार की सीमा से लगते हैं जहां पार्टी ने पांच सीटें जीती हैं।
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