शोभाबाजार में 267 सालों से हो रही दुर्गा पूजा, कोलकाता की है पहली पूजा

22/10/2023,9:21:25 PM.

कोलकाताः बहुत से लोगों को यह पता नहीं है कि कोलकाता में सबसे पहले कहां दुर्गा पूजा हुई थी। यानी कोलकाता की पहली दुर्गा पूजा कौन सी है। आइये हम आपको वहां लिये चलते हैं। यह है मध्य कोलकाता में स्थित शोभा बाजार का इलाका। यही हैं शोभा बाजार राजबाड़ी। अंग्रेजों के जमाने में जमींदार के तौर पर प्रतिष्ठित महाराज नवकृष्ण देब द्वारा राजबाड़ी को बनाया गया था और यहां दुर्गा पूजा होते हुए आज 266 साल हो गये। शोभा बाजार में दो राजबाड़ी है। एक तो यह मुख्य राजबाड़ी है, दूसरा ठीक इसके सामने बनी है छोटी राजबाड़ी है। जिस तरह से महाराज नवकृष्ण देब ने दुर्गा पूजा आरंभ की थी, ठीक उसी तरह से उनकी छठी और सातवीं पीढ़ी द्वारा दुर्गा पूजा आज भी की जा रही है। मुख्य राजबाड़ी के साथ ही छोटी राजबाड़ी में भी दुर्गा प्रतिमा बैठायाी जाती है, और वहां भी दुर्गा पूजा उसी मर्यादा के साथ की जाती है। यहां भी लोग देखने के लिए आते हैं।
शोभा बाजार राजबाड़ी का कोलकाता और बंगाल के बंगालियों के लिए कितना महत्व है, यह यहां आकर ही अनुभव किया जा सकता है। कोलकाता के बड़े-बड़े पूजा मंडपों में जिस तरह से लोग पहुंचते हैं, ठीक उसी तरह से शोभा बाजार राजबाड़ी की दुर्गा पूजा देखने को पहुंचते हैं। सप्तमी की सुबह राजबाड़ी में नवपत्रिका के स्नान के बाद विशेष पूजा हुई। सुबह से ही यहां लोगों की खासी भीड़ रही और दोपहर बाद तो यह भीड़ बहुत बढ़ गयी। आपको यह जानकार हैरानी होगी कि यहां कोई पंडाल नहीं बनता है, बल्कि राजबाड़ी में दुर्गा पूजा के लिए एक बड़ा कक्ष बना हुआ है, हर साल यहीं प्रतिमा बनती है और फिर मां दुर्गा की आराधना की जा जाती है। राजबाड़ी की बनावट भी खास है। दो मंजिला यह राजबाड़ी सफेद रंग का है और उसमें लाल रंग के बार्डर हैं। राजबाड़ी के बीच में बड़ी सी खाली जगह है जहां निश्चित रूप से पुराने जमाने में तरह-तरह के कार्यक्रम होते होंगे।
शोभा बाजार राजबाड़ी में दुर्गा पूजा आरंभ होने की एक कहानी हैं। महाराज नवकृष्ण देब की छठी पीढ़ी के बुजुर्ग सदस्य प्रबाल नारायण देब बताते हैं कि 1757 में प्लासी की लड़ाई हुई थी और अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला को हरा दिया था। उस समय महाराज नवकृष्ण देव को महसूस हुआ कि हिंदू धर्म और हिंदुत्व पर एक दबाव आ गया है। इसलिए उन्होंने हिंदुओं में अपने धर्म के प्रति आस्था को मजबूत करने के लिए ही दुर्गा पूजा आरंभ कराया था। हालांकि विकीपीडिया में यह उल्लेख है कि महाराज नवकृष्ण देव ने प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला की हार के बाद बड़े स्तर पर दुर्गा पूजा का आयोजन किया और अतिथि के तौर पर वारेन हेस्टिंग और लार्ड क्लाइव को बुलाया था। महाराज का अंग्रेजों के साथ बेहतर संबंध था। जब स्वामी विवेकानंद अमेरिका के सिकागो में अपने प्रसिद्ध भाषण के बाद 1897 में भारत लौटे तो उनका पहली बार शोभा बाजार राजबाड़ी में राजा विनय देब बहादुर द्वारा नागरिक अभिनंदन किया गया था।
बहरहाल कोलकाता के शोभा बाजार राजबाड़ी में दुर्गा पूजा से 14 दिन पहले मां दुर्गा को जगाने के लिए मंत्रोच्चारण का पाठ शुरू हो जाता है। प्रबाल नारायाण देब कहते हैं कि जिस तरह भगवान राम ने लंका जाने से पहले पूजा की थी और फिर लंका में जीत हासिल कर आने के बाद पूजा की थी, ठीक उसी तरह से हमारे यहां देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। प्रतिमा की पूजा होने से पहले एक वेदी है, उस वेदी के समक्ष की मां को जगाने के लिए 14 दिनों तक मंत्रोच्चारण किया जाता है।
कोलकाता और पूरे बंगाल में दुर्गा पूजा अब महा उत्सब बन गया है और इसे लेकर एक नई अर्थव्यवस्था भी पैदा हो गयी है। महाराज नवकृष्ण देब के वंशज प्रबाल नारायण देव इसका उल्लेख कर कहते हैं कि यह हमारे महाराज द्वारा आरंभ दुर्गा पूजा ही है जिसकी वजह से 33 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार हर साल पूजा कालखंड में होने लगा है। हालांकि यह आंकड़ा 2019 का है। फिलहाल यह कारोबार 40 हजार करोड़ रुपये का हो गया है।
बहरहाल कोलकाता के बड़े-और भव्य पूजा मंडपों के विपरीत शोभा बाजार राजबाड़ी अपनी प्राचीन पहचान के साथ आज भी बंगाली समाज के दिलो-दिमाग में गरिमा के साथ बसा हुआ है। यही कारण है कि छोटे बच्चे, युवा से लेकर उम्र दराज के लोग परिवार के साथ यहां खींचे चले आ रहे हैं। संभवतः यहां आकर उन्हें अपने बंगाली होने की पहचान यानी आइडेंटिटी की अनुभूति तीव्रता एवं गहराई के साथ महसूस होती होगी।

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