हिंदी कविता की वैश्विक शख्सियत थे मंगलेश डबराल : साहित्य अकादेमी

10/12/2020,8:54:02 PM.

नई दिल्ली (एजेंसी) । साहित्य अकादेमी ने हिंदी कविता के सशक्त कवियों में शुमार मंगलेश डबराल के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। साहित्य अकादेमी ने अपनी शोक संवेदना में कहा है कि मंगलेश डबराल की अपनी एक अस्पष्ट आवाज और विनम्र भाषा थी जिसकी वजह से उनकी वैश्विक स्तर पर पहचान थी। उनके निधन से भारतीय साहित्य को बड़ी क्षति पहुंची है। अकादेमी ने डबराल के प्रति अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की है।

मंगलेश डबराल पिछले कुछ दिनों से कोरोना वायरस से संक्रमित थे। बुधवार (9 दिसम्बर) को उनका देहावसान हो गया। उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है। उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल के काफलपानी गांव में जन्मे मंगलेश की शिक्षा-दीक्षा देहरादून में हुई थी। दिल्ली आकर हिन्दी पैट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास में काम करने के बाद वह भोपाल में मध्यप्रदेश कला परिषद्, भारत भवन से प्रकाशित साहित्यिक त्रैमासिक पूर्वाग्रह में सहायक संपादक रहे थे। इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित अमृत प्रभात में भी उन्होंने कुछ दिन नौकरी की थी। कुछ दिन जनसत्ता में साहित्य संपादक और कुछ समय ‘सहारा समय’ में संपादन कार्य करने के बाद वह नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़े रहे थे।

डबराल के छह काव्य संग्रह प्रकाशित हैं- पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह है, नये युग में शत्रु और स्मृति एक दूसरा समय है। इसके अलावा दो गद्य संग्रह- लेखक की रोटी और कवि का अकेलापन के साथ ही दो यात्रावृत्त- एक बार आयोवा तथा एक सड़क एक जगह भी प्रकाशित हो चुके हैं। फ़रवरी 2020 में छठा काव्य संग्रह स्मृति एक दूसरा समय है शीर्षक से प्रकाशित हुआ था। हाल ही में उनके यात्रा संस्मरण की एक पुस्तक ‘एक सड़क एक जगह’ भी आई थी।

दिल्ली हिन्दी अकादेमी के साहित्यकार सम्मान, कुमार विकल स्मृति पुरस्कार और अपने कविता संग्रह ‘हम जो देखते हैं’ के लिए वर्ष 2000 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित डबराल की ख्याति अनुवादक के रूप में भी रही है। मंगलेश की कविताओं के भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेजी, रूसी, जर्मन, डच, स्पेनिश, पुर्तगाली, इतालवी, फ्रांसीसी और बुल्गारियाई आदि भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। कविता के अतिरिक्त वे साहित्य, सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति के विषयों पर नियमित लेखन भी करते रहे हैं। साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित विश्व कविता उत्सव में शामिल हुए कवियों की कविताओं की पुस्तक सबद का संपादन उन्होंने ही किया था।

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