08/07/2020,6:04:20 PM.
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नई दिल्ली (एजेंसी)। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ से अमेरिका बाहर हो रहा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने डब्ल्यूएचओ को छोड़ने की विधिवत प्रकियाएं शुरू कर दी है। ट्रंप ने इस साल मई में ही घोषणा कर दी थी कि वह ना सिर्फ डब्ल्यूएचओ की फंडिग रोक रहे हैं बल्कि अमेरिका डब्ल्यूएचओछोड़ भी रहा है।
अमेरिका के इस फैसले पर चीन ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। ग्लोबल टाइम्स का कहना है कि अमेरिका के इस फैसले से पूरी दुनिया खतरे आ जाएगी। यूएन सेक्रेटरी जनरल के प्रवक्ता स्टीफेन दुजारिक ने इस बात की पुष्टि की है कि अमेरिका ने 6 जुलाई , 2021 से डब्ल्यूएचओ के सदस्य देश से खुद को अलग करने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है। अमेरिका में विदेश मामले की कमेटी के सदस्य सीनेटर राबर्ट मेनेंडेज ने भी ट्वीट के जरिए यह कहा है कि यूएस कांग्रेस ने इस महामारी के बीच अमेरिका द्वारा डब्ल्यूएचओ को छोड़ने का नोटिफिकेशन प्राप्त कर लिया है।
अमेरिकी राष्ट्रपति का मानना है कि कोरोना फैलाने में चीन की भूमिका को डब्ल्यूएचओ ने जानबूझकर नजरअंदाज किया और चीन का पक्ष लिया। ट्रंप ने इसके पहले डब्ल्यूएचओ को चेतावनी दी थी कि वह अपने कार्यप्रणाली में सुधार करे और चीन की एजेंसी के तौर पर काम ना करे। उसी परिप्रेक्ष्य मे अमेरिका ने डब्ल्यूएचओ से हटने की प्रकिया प्रारंभ कर दी है। हालांकि यूरोपियन यूनियन ने संयुक्त राष्ट्र संघ के इस संगठन को ना छोड़ने की अमेरिका से अपील की, लेकिन ट्रंप प्रशासन अब मानने को तैयार नहीं है।
अमेरिका का डब्ल्यूएचओ से अलग होने की प्रक्रिया पूरी करने में एक साल लग जाएगा। 1948 के अमेरिकी कांग्रेस प्रस्ताव के अनुसार अमेरिका यूएन से जुड़े किसी भी संगठन को एक साल का नोटिस देकर अलग हो सकता है, लेकिन इस बीच उसे अपने समस्त देय का भुगतान भी करना होगा। अमेरिका के इस निर्णय के बाद यह सवाल उठने लगा है कि डब्ल्यूएचओ अब कैसे अपने सारे कार्यक्रम चला सकेगा और विश्व स्वास्थ्य पर निगरानी रख सकेगा।
एक वरिष्ठ अमेरिकन अधिकारी ने सीबीसी न्यूज को बताया कि वॉशिंगटन ने डब्ल्यूएचओ में व्यापक सुधार के कई सुझाव दिए थे लेकिन डब्ल्यूएचओ ने उन सुधारों को लागू करने से मना कर दिया। इस अधिकारी का कहना है कि चूंकि उन्होंने हमारे निवेदन को ठुकरा दिया है, इसलिए आज हम उनसे अपना नाता तोड़ रहे हैं। ट्रंप के इस फैसले से अमेरिका की राजनीति भी गरमा गई है। राष्ट्रपति के चुनाव में ट्रंप के विपक्ष में खड़े जो बिडेन ने यह बयान जारी किया है कि यदि वे राष्ट्रपति चुने जाते हैं तो पहले ही दिन वे डब्ल्यूएचओ को दोबारा ज्वाइन करने का फैसला करेंगे।
उल्लेखनीय है कि अमेरिका डब्ल्यूएचओ को सबसे अधिक फंड देने वाला देश है। 2019 में ट्रंप प्रशासन ने ही डब्ल्यूएचओ को 400 मिलियन डाॅलर का फंड दिया था जो कि उसके प्राप्त होने वाले कुल फंड का 15 प्रतिशत है।
चीन ने अमेरिका के इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा है कि अमेरिकी प्रशासन में दूरदर्शिता की कमी है और यह फैसला तुच्छ राजनीति से प्रभावित है। चीन ने यह भी संभावना जताई है कि ट्रंप प्रशासन का यह फैसला लागू नहीं होगा, क्योंकि नवंबर में राष्ट्रपति के चुनाव के बाद अमेरिका में नई सरकार आ जाएगी। चाइनीज सेंटर फाॅर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के चीफ इपीडेमियोलाॅजिस्ट झेंग गुआंग का कहना है कि अमेरिका द्वारा डब्लूटीओ छोड़ने का फैसला उसके ही हितों और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाएगा।
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