एल-12

12/07/2020,8:58:47 PM.

कल मैंने दो कविताएं लिखीं। दिन को जब पहली कविता लिखी तो मैंने खुशी महसूस की। रात को एक कविता लिखी। तब मन कुछ उदास था और मैं वही भाव प्रकट करना चाहता था लेकिन कविता में भाव आशा का प्रकट हुआ।
इधर आप से दोस्ती के साथ मुझ में पॉजिटिवीटी का भाव आया है। मैं कोशिश करता हूं कि मैं पॉजिटिव बना रहूं….अगर मन में निराशा का भाव आए भी तो कोशिश रहती है कि उससे जल्द बाहर निकल जाऊं….हालांकि यह मुश्किल होता। लेकिन अब जब मैंने लिखना शुरू किया तो लगता है, जीवन पहले से अच्छे तरीके से जी पाऊंगा…मेरा सपना लिखना और लेखक बनने का ही था। पिछले कई सालों में यह लगा, क्योंकि मैं लिख नहीं रहा हूं, और, अपनी आत्मा की आवाज नहीं सुन रहा हूं, इसलिए डेड हो गया हूं…मैं वह इंसान नहीं हूं जैसा मैं अपने आप को देखना चाहता था।
अपने आप से प्यार करने का तरीका मैंने सीखा नहीं था। अच्छे जीवन का पहला सूत्र है-हम अपने आप से प्यार करें और, वह करें जो हमें करने में आनंद मिलता है। लेकिन मेरे, मैं जैसा नहीं होने का एक और कारण था कि मैं अपने पेशे यानी पत्रकारिता में पिछले 15 सालों से डेस्क के काम में लग गया था- एक कमरे के अंदर कंप्यूटर में ढुके रहना। जबकि मुझे खुशी रिपोर्टिंग के काम से मिलती थी। क्योंकि जब मैं रिपोर्टर था तो लगता कि मैं दुनिया के आगे-आगे हूं। लोगों से मिलना जुलना, उन्हें प्रभावित कर अपना काम निकालना मन को संतुष्टि देता था। तब मेरा प्रयास अपने काम को श्रेष्ठता देना होता था। और जब, मैं कंप्यूटर पर बैठकर अपनी रिपोर्ट फाइल करता तो लिखते हुए मैं इतना एकाग्र हो जाता कि तब लगता यह मेरे लिए कला है, पूजा है। और, इसका इनाम मुझे लोगों की प्रशंसा से मिलता। मैं उनकी नजरों में एक अच्छा रिपोर्टर होता।
सच कहूं तो, और यह सत्य भी है, हम अकेले कुछ नहीं होते। इनसान होने के नाते हम सामाजिक प्राणी हैं, और हमें एक दूसरे के सहारे की जरूरत होती है। एक-दूसरे की प्रशंसा की। पिछले कुछ सालों में कई बार लगा कि मैं अकेल चलते-चलते थक गया हूं। फिर मैं यह भी सोचता- मैं नदी के इस छोर पर बैठा हूं जबकि दूसरे छोर पर जिंदगी है लेकिन मैं नदी पार करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हूं।

अब आपसे यह दोस्ती मेरे लिए काफी मायने रखती है। हालांकि हममें कुछ अनिश्चितता-सी स्थिति है। आप से बात करने की इच्छा बनी रहती है। सो, लिखकर ही सही। शायद फोन पर यह सब कह भी नहीं पाता। बहरहाल आपसे मैं दिल की कुछ बात कर सकता हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि आप जिंदगी को गहराई से समझती हैं। सालों से ऐसा कोई नहीं था जिससे मैं अपने दिल की बात कह सकूं। लेकिन यह कब तक चलेगा, मुझे पता नहीं। दरअसल मैं जल्द निराश हो जाता हूं। हालांकि मैं अपने को दिलासा देते रहता हूं कि मुझे धैर्य रखना चाहिए और मजबूत बनना चाहिए। हम इतने दूर हैं, और यह कोरोना संकट भी है, कि निकट भविष्य में मिलना मुश्किल लग रहा। लेकिन दूर रहते हुए भी एक-दूसरे के प्रति अपनत्व का भाव रखा जा सकता है, नजदीकी महसूस की जा सकती है।

क्या हम गुड नाइट-गुड मॉनिंर्ग से आगे नहीं बढ़ सकते हैं… और नहीं तो बस, मेरे बारे में आप क्या राय रखती हैं, यह तो आप बता ही सकती हैं….अगर आप अब भी कुछ नहीं कहती हैं तो आपकी खामोशी भी मुझे स्वीकार है…..आपसे व्हाटसऐप पर जुड़े रहना ही मेरे लिए अमूल्य है।

शुभरात्रि..

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