11/08/2020,9:51:51 PM.
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poems
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11-07-2020
ईश्वर का तय किया दिन
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वह कोई ईश्वर का तय किया दिन था
हवाएं पर्वतों के उस पार से ले आई थीं खुश्बू
सूरज की तपती धूप बन गई थी रेशम सी मुलायम
उस दिन रात असंख्य जुगनुओं से चकाचौंध थी
कि तुमने चुपके से दी थी थपकी
कि मेरा सूख चुका हृदय हो गया हरा-भरा
खाली-खाली से बीत रहे दिन में अब घुल गई हैं तुम्हारी यादें
सपनों ने भी ढूंढ़ ली हैं जगह
वह दिन जब आएगा
जब हम दूर से एक दूजे को देख
मुस्कुराते हुए कुछ घबराते हुए करीब आएंगे
लेकिन डर का एक साया भी है
जो सांसों में घुली-मिली सी रहती है
कि जो इतनी लंबी-सी दूरी है
कि कभी पाटा ही न जा सके
और जो सपने हैं
यादों की अंधेरी गुफाओं में खो जाएं
11-07-2020
तब तुम आना
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एक बहुत लम्बी घनी रात के बाद
रौशनी अपनी पूरी ताकत लगाकर
फूट पड़ेगी
तब तुम आना
मैं वहीं मिलूंगा
जहां से उजाले की शुरुआत हुई थी
भले यह दिन
कहीं अंधेरे में गुम है
लेकिन संभव है कि ऐसा हो
तुम देखना
जब तुम्हें आते देखूंगा
तो मेरी आंखें कैसी चमक उठेंगी
14-07-2020
एक धुंधली सी तस्वीर
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वह ढलते हुए दिन की शाम की शुरुआत थी
दूर तक छायादार वृक्षों के बीच से
वह पगडंडी आंखों से ओझल हो रही थी
पक्षियों के कोलाहाल से पार्क गुंजयमान था
कि मेरे गरम हाथ में उसका नरम हाथ था
कि चलते-चलते हम बैठ गए एक वृक्ष के नीचे।
पेड़ से लगी थी मेरी पीठ
और उसकी देह मेरी बांहों के घेरे में कसमसा रही थी
कि उसका चेहरा मैंने अपने पास खींच लिया
और उसके तपते होंठों को मैंने भरपूर चूम लिया।
यह एक धुंधली सी तस्वीर है
जो कभी पूरी नहीं दिखी
जो मेरे मस्तिष्क की शिराओं में
ना जाने कब से भटकती हुई अब खो सी गई है।
कितने दिन कितने बरस
यूं ही बीत गए
अब वह तस्वीर भी नहीं दिखती
और मैंने उसे ढूंढ़ने की कोशिश कब की छोड़ दी।
15-07-2020
मेरे शहर के जिंदा होने का सबूत
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लैंप पोस्टों और दुकानों की बत्तियों से चौराहा जगमग था
उस तरफ ठेले पर से चाट के मसालेदार गंध तिर रही थी
तो फुचके वाले के पास लड़कियां का हुजूम था
यह एक छोटा सा चौराहा था जो मेरे शहर के
एक रास्ते के बीच में उनींदा सा बसा था
शाम और रात के बीच के पहर में जीवन अबाध था
तभी एक मोटरसाइकिल चौराहे से सरकती-सी गुजरी
जिस पर वह गोरी लड़की बैठी थी पैर लटकाए
उसका भाई या पिता चला रहा था मोटरसाइकिल
लड़की एकटक ताके जा रही थी पीछे
उसके चेहरे पर थी एक अजीब मधुर मुस्कुराहट
तभी उसकी आंखों में आई मचलती सी चमक
बेचैन सी पलकें पल भर झपकीं
और जैसे कहा हो
अब बस, लौट जाओ
पीछे थी एक और मोटरसाइकिल
जिस पर बैठे लड़के ने लगा दिया अचानक ब्रेक
कुछ क्षण में लड़की हो गई ओझल
लड़के ने घुमा ली अपनी मोटरसाइकिल
बीच चौराहे में यह प्रेम की स्वीकृति थी या कुछ और
लेकिन जरूर था मेरे शहर के जिंदा होने का सबूत
जहां रात के अंधेरें में कब लाश गिर जाए
यह कोई नहीं कह सकता
या दिन के उजाले में विरोध के स्वर पर हमले हो जाए
20-07-2020
रहने दो मुझे मेरे अंधियारे कोने में
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मेरे घर में है सीलन भरा अंधेरा
और मेरे मन के कोने-कोने में धुंधलका
मेरा हृदय है लहू-लुहान
कि धंसे हैं अनगिनत भाले
भले उजियारा हो जाए बाहर
बादलों को भी भेदकर आए सूरज की किरनें
कई दिन कई साल से मेरे मन में नहीं ठहरता उजाला
भले बादल गरजे, बरसे पानी
पल दो पल की हरियाली भी नहीं ठहरती
मेरा हृदय रहता सूखा-ही-सूखा
मौके-बेमौके जब कभी उठता है
मन के किसी कोने से ज्वार
आंखों के पोरों से ढुलकती हैं गर्म नमकीन बूंदें
फिर भी क्यों है इतना सूखापन
अब अंधेरे से हो गई है
बहुत यारी मेरी
रहने दो मुझे मेरे अंधियारे कोने में
उजाले का न दिखाओ भ्रम
कि कहीं ऐसा न हो जाए
तुम खो जाओ मेरे अंधियारे में
25-07-2020
जो ये तुम्हारे चेहरे पर मुस्कुराहट है
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जो ये तुम्हारे चेहरे पर मुस्कुराहट है
कहां से लाती हो
नहीं, मैं नहीं मांगूगा तुमसे
मेरे रगों में भी है
मनुष्यता का यह डीएनए
जो ये हर बार उभर आती है
मेरे रक्त में बहती पीड़ा
मैं कैसे छिपाऊं
कहां से लाऊं
बिकती है क्या कहीं
सुख की कोई पुड़िया
पता है क्या तुम्हें
किस शहर के
किस दुकान, किस बाजार, किस मॉल में
बिकती है सुख की पुड़िया
26-07-2020
अब गांव में मिल-बैठ नहीं रोतीं औरतें
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अब वह नहीं दिखती तस्वीर
गांव में जो दिखती थी पहले
जब-जब हम गांव जाते
देखते थे हम हमेशा
मां संग मिल-बैठ
रोतीं काकी बुआ बड़की मां
जब आती
रिश्ते की और कोई महिला
फिर मिल-बैठ रोती एक-एककर
जब मैं हो रहा था बड़ा
और बड़े होने के कई साल बाद तक
मन में आता रहता
कि क्यों रोती हैं मिल-बैठ
गांव की औरतें
अब गांव में मिल-बैठ नहीं रोती औरतें
कि धीरे-धीरे खुलने लगीं परतें
समझ में आने लगा
क्यों रोती हैं मिल-बैठ गांव की औरतें
दुख, हां ढेर सारा दुख
होता गया उनके आंचल में जमा
पति बच्चे नाते रिश्ते
के लिए चौका-चूल्हा
जी-तोड़ अनथके परिश्रम
अपनों से ही अपमान अवेहलना लांक्षना
रतजगे में भोगी पीड़ा
परिवार खींचने की चक्की में
पीस-पीस कर घिसना
कोलाहल में भी अकेलेपन का दंश
दर्द की और-और अनचिन्हे दास्तानें
बदन में टिसते अनदेखे घाव
मरहम का आस नहीं
प्रतीक्षा की लंबी रातें
कि अब गांव में मिल-बैठ नहीं रोती औरतें
कि रीत हुई यह पराई
अब दुख भी नहीं झरता आंचल से
सुख साधन
बहे जा रहे गांव की पगडंडियों में
अब आंचल में बंधे हैं अभिमान
आंसुओं को आंखों में ही रोकना
बन गई है बड़ी कला
अब दूर नहीं कोई
टावर दिखते हैं गांव-गांव
मोबाइल पर होती रहती है बात
नहीं तो व्हाट्सऐप पर होती है चैट
या आता वीडियो कॉल
और नहीं तो फेसबुक पर होता दुआ-सलाम
सब है पास-पास
गांव में आ बसा है शहर
शहर में है सब सुंदर-सुंदर
सुंदर-सुंदर है सबका जीवन
28-07-2020
रोशनी की सुनहली किरण
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हमने जो रास्ते चुने हैं
उस पर चलना
मेरे लिए किसी गहरे अंधेरे गुफा
में चलना है
फिर भी मैं चलूंगा
कि चलता रहूंगा
इस उम्मीद में
कि कहीं अंत में
रोशनी की सुनहली किरण
मेरे थके-हारे बदन
और टूटते-बिखरते मन को
तरोताजा कर दे
22/10/2023,9:21:25 PM. Read more
28/09/2023,5:37:49 PM. Read more
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